आईसीएस तक का सफर: सुभाष चंद्र बोस की एक प्रेरणादायक कहानी
सुभाष चंद्र बोस, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक, ने अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में ही अद्वितीय प्रतिबद्धता और मेहनत का परिचय किया।
**शिक्षा का प्रारंभ:**
1909 में, सुभाष ने कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण की, जहां उनके जीवन को प्रभावित करने वाले प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास के साथ उनकी मुलाकात हुई।
**अद्वितीय नेतृत्व:**
1916 में, जब उन्होंने दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) की पढ़ाई कर रहे थे, उनका नेतृत्व छात्रों के बीच एक झगड़े में प्रमुख बना, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से निकाला गया।
**साहस और संघर्ष:**
सेना में भर्ती के प्रयास के बाद भी उन्हें अयोग्य ठहराया गया, लेकिन उन्होंने अपनी सारी कठिनाईयों का सामना करते हुए टेरीटोरियल आर्मी में प्रवेश प्राप्त किया।
**आईसीएस की ओर:**
पिता की इच्छा के बावजूद, उन्होंने आईसीएस की तैयारी में लगे और 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान हासिल किया।
**अद्वितीय निर्णय:**
जब उन्हें अंग्रेजों की गुलामी में रहने का संदर्भ मिला, तो उन्होंने अपने प्रिय भारत से त्यागपत्र देने का निर्णय लिया। इस अद्वितीय निर्णय के पीछे उनकी माँ का साथ और समर्थन एक महत्वपूर्ण कारक बना।
सुभाष चंद्र बोस का यह सफर हमें यह सिखाता है कि संघर्ष, साहस, और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनकी कहानी हमें यह दिखाती है कि मेहनत और समर्पण से, किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है और आज़ादी की उच्च ऊँचाईयों तक पहुंच सकते हैं।

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